जागरण
संवाददाता, बांका: शिक्षक बहाली में फर्जीवाड़ा का बांका से गहरा रिश्ता
रहा है। खास कर 2006 और 2008 में हुई प्रथम और द्वितीय चरण की शिक्षक
बहाली में फर्जीवाड़ा का खूब खेल हुआ। नियोजन समिति के मुखिया और प्रमुख ने
रेबड़ी की तरह शिक्षक की नौकरी बांटी। इसमें उन्होंने अपने परिवार के लोगों
का खूब एडजस्ट किया। हद कि एक-एक मुखिया और प्रमुख ने इस गोल्डन चांस को
खूब भुनाया और परिवार के दर्जन भर तक लोगों को शिक्षक की नौकरी में शिफ्ट
कर दिया। एक-एक पंचायत में मुखिया जी ने भाई से लेकर साला-साली और ससूर तक
को मास्टर बना कर अपनी सात पीढ़ी तार ली। ऐसा जिला के एक-दो पंचायतों में
नहीं, बल्कि पांच दर्जन से अधिक पंचायतों में हुआ। अलबत्ता, इसके लिए
मुखिया और प्रमुख जी ने फर्जी प्रमाण पत्र का खूब सहारा लिया। कई अमान्य
डिग्री पर अपने रिश्तेदारों को शिक्षक बना दिया। वहीं कुछ ने तो बिहार
बोर्ड की इंटर और मैट्रिक डिग्री में ही अंक अधिक बढ़ा कर नौकरी करा ली।
ऐसा कैसे हुआ संभव
प्रथम और द्वितीय चरण की शिक्षक बहाली में नियोजन की सारी ताकत नियोजन समिति के पास थी। जिला का इस पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया था। ऐसे में अपनों की बहाली के लिए अधिकांश नियोजन समिति ने सामान्य आवेदकों का आवेदन ही जमा नहीं लिया। अधिकांश नियोजन समिति में बंद दरवाजे ही आवेदन हुआ। इस पर जब हो हंगामा और धरना-अनशन शुरू हुआ तो नियोजन समिति ने शिक्षा अधिकारी तक को माइनेज कर लिया। हाल यह कि तब सभी शिक्षकों के प्रमाण पत्र जांच का सरकारी आदेश भी हवा हवाई रह गया। नतीजा, आठ साल बाद भी ये शिक्षक नौकरी कर रहे हैं।
अब जांच शुरू होने पर खुलेगा राज
वेतनमान की लड़ाई में जब सरकार ने सभी नियोजित शिक्षकों के प्रमाण पत्र सत्यापन का आदेश दिया है तो ऐसे फर्जी शिक्षकों का होश उड़ा हुआ है। ऐसे लोगों को बचाने के लिए शिक्षा माफिया का बड़ा गिरोह सक्रिय हो गया है। सरकारी आदेश पर दी सेंट्रल बोर्ड ऑफ हाइयर एजुकेशन नई दिल्ली की डिग्री को अमान्य करार दिया गया है। बांका में ही इस डिग्री पर अमरपुर व बांका के आधा दर्जन शिक्षक हटाये गये। जानकारी के अनुसार बांका में अब भी पांच दर्जन से अधिक इस डिग्री वाले लोग नौकरी कर रहे हैं। इसी तरह टीटीसी चितरंजन की अमान्य डिग्री पर धोरैया में एक दर्जन से अधिक शिक्षक नौकरी कर रहे हैं। बांका के लोधम, छत्रपाल, कझिया, लखनौड़ी, अमरपुर के विशनपुर, भितिया, कटोरिया के बसमत्ता, मोथाबाड़ी आदि पंचायत के नियोजन पर तब काफी बवाल हुआ था। लेकिन, जांच ठंडा रहने के कारण सभी फर्जी बचते रह गये।
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जागरण संवाददाता, बांका: शिक्षक बहाली में फर्जीवाड़ा का बांका से गहरा रिश्ता रहा है। खास कर 2006 और 2008 में हुई प्रथम और द्वितीय चरण की शिक्षक बहाली में फर्जीवाड़ा का खूब खेल हुआ। नियोजन समिति के मुखिया और प्रमुख ने रेबड़ी की तरह शिक्षक की नौकरी बांटी। इसमें उन्होंने अपने परिवार के लोगों का खूब एडजस्ट किया। हद कि एक-एक मुखिया और प्रमुख ने इस गोल्डन चांस को खूब भुनाया और परिवार के दर्जन भर तक लोगों को शिक्षक की नौकरी में शिफ्ट कर दिया। ऐसा कैसे हुआ संभव
प्रथम और द्वितीय चरण की शिक्षक बहाली में नियोजन की सारी ताकत नियोजन समिति के पास थी। जिला का इस पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया था। ऐसे में अपनों की बहाली के लिए अधिकांश नियोजन समिति ने सामान्य आवेदकों का आवेदन ही जमा नहीं लिया। अधिकांश नियोजन समिति में बंद दरवाजे ही आवेदन हुआ। इस पर जब हो हंगामा और धरना-अनशन शुरू हुआ तो नियोजन समिति ने शिक्षा अधिकारी तक को माइनेज कर लिया। हाल यह कि तब सभी शिक्षकों के प्रमाण पत्र जांच का सरकारी आदेश भी हवा हवाई रह गया। नतीजा, आठ साल बाद भी ये शिक्षक नौकरी कर रहे हैं।
अब जांच शुरू होने पर खुलेगा राज
वेतनमान की लड़ाई में जब सरकार ने सभी नियोजित शिक्षकों के प्रमाण पत्र सत्यापन का आदेश दिया है तो ऐसे फर्जी शिक्षकों का होश उड़ा हुआ है। ऐसे लोगों को बचाने के लिए शिक्षा माफिया का बड़ा गिरोह सक्रिय हो गया है। सरकारी आदेश पर दी सेंट्रल बोर्ड ऑफ हाइयर एजुकेशन नई दिल्ली की डिग्री को अमान्य करार दिया गया है। बांका में ही इस डिग्री पर अमरपुर व बांका के आधा दर्जन शिक्षक हटाये गये। जानकारी के अनुसार बांका में अब भी पांच दर्जन से अधिक इस डिग्री वाले लोग नौकरी कर रहे हैं। इसी तरह टीटीसी चितरंजन की अमान्य डिग्री पर धोरैया में एक दर्जन से अधिक शिक्षक नौकरी कर रहे हैं। बांका के लोधम, छत्रपाल, कझिया, लखनौड़ी, अमरपुर के विशनपुर, भितिया, कटोरिया के बसमत्ता, मोथाबाड़ी आदि पंचायत के नियोजन पर तब काफी बवाल हुआ था। लेकिन, जांच ठंडा रहने के कारण सभी फर्जी बचते रह गये।
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एक-एक पंचायत में मुखिया जी ने भाई से लेकर साला-साली और ससूर तक को मास्टर बना कर अपनी सात पीढ़ी तार ली। ऐसा जिला के एक-दो पंचायतों में नहीं, बल्कि पांच दर्जन से अधिक पंचायतों में हुआ। अलबत्ता, इसके लिए मुखिया और प्रमुख जी ने फर्जी प्रमाण पत्र का खूब सहारा लिया। कई अमान्य डिग्री पर अपने रिश्तेदारों को शिक्षक बना दिया। वहीं कुछ ने तो बिहार बोर्ड की इंटर और मैट्रिक डिग्री में ही अंक अधिक बढ़ा कर नौकरी करा ली।
ऐसा कैसे हुआ संभव
प्रथम और द्वितीय चरण की शिक्षक बहाली में नियोजन की सारी ताकत नियोजन समिति के पास थी। जिला का इस पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया था। ऐसे में अपनों की बहाली के लिए अधिकांश नियोजन समिति ने सामान्य आवेदकों का आवेदन ही जमा नहीं लिया। अधिकांश नियोजन समिति में बंद दरवाजे ही आवेदन हुआ। इस पर जब हो हंगामा और धरना-अनशन शुरू हुआ तो नियोजन समिति ने शिक्षा अधिकारी तक को माइनेज कर लिया। हाल यह कि तब सभी शिक्षकों के प्रमाण पत्र जांच का सरकारी आदेश भी हवा हवाई रह गया। नतीजा, आठ साल बाद भी ये शिक्षक नौकरी कर रहे हैं।
अब जांच शुरू होने पर खुलेगा राज
वेतनमान की लड़ाई में जब सरकार ने सभी नियोजित शिक्षकों के प्रमाण पत्र सत्यापन का आदेश दिया है तो ऐसे फर्जी शिक्षकों का होश उड़ा हुआ है। ऐसे लोगों को बचाने के लिए शिक्षा माफिया का बड़ा गिरोह सक्रिय हो गया है। सरकारी आदेश पर दी सेंट्रल बोर्ड ऑफ हाइयर एजुकेशन नई दिल्ली की डिग्री को अमान्य करार दिया गया है। बांका में ही इस डिग्री पर अमरपुर व बांका के आधा दर्जन शिक्षक हटाये गये। जानकारी के अनुसार बांका में अब भी पांच दर्जन से अधिक इस डिग्री वाले लोग नौकरी कर रहे हैं। इसी तरह टीटीसी चितरंजन की अमान्य डिग्री पर धोरैया में एक दर्जन से अधिक शिक्षक नौकरी कर रहे हैं। बांका के लोधम, छत्रपाल, कझिया, लखनौड़ी, अमरपुर के विशनपुर, भितिया, कटोरिया के बसमत्ता, मोथाबाड़ी आदि पंचायत के नियोजन पर तब काफी बवाल हुआ था। लेकिन, जांच ठंडा रहने के कारण सभी फर्जी बचते रह गये।
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